
समुद्रों में उठते तूफानों का नामकरण कैसे होता है? जानिए कौन रखता है नाम, कब और किन नियमों से!
जब भी मौसम विभाग किसी नए चक्रवाती तूफान का नाम घोषित करता है, लोगों का ध्यान तुरंत उसकी ओर चला जाता है।
“फानी”, “अम्फान”, “ताउते”, “गुलाब”, “बिपरजॉय” या अब “मोंथा” — ये नाम सुनते ही दिमाग में तूफान की तस्वीर बन जाती है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन तूफानों के नाम आखिर रखता कौन है?
क्या ये नाम यूं ही रख दिए जाते हैं या इसके पीछे कोई तय प्रक्रिया होती है?
आइए जानते हैं — समुद्रों में बनने वाले चक्रवातों के नामकरण की पूरी रोचक कहानी।
नामकरण की जिम्मेदारी किसके पास है?
उत्तर हिंद महासागर (North Indian Ocean) क्षेत्र में — जिसमें बंगाल की खाड़ी और अरब सागर आते हैं — हर साल कई उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) बनते हैं।
इन तूफानों का नामकरण करने की जिम्मेदारी भारत के पास है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD), जो नई दिल्ली में स्थित है, को विश्व मौसम संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र के मौसम विज्ञान केंद्र द्वारा Regional Specialized Meteorological Centre (RSMC) के रूप में नामित किया गया है।
IMD ही वह संस्था है जो न केवल भारत बल्कि इस पूरे क्षेत्र में बनने वाले तूफानों की निगरानी करती है, उनकी गति, दिशा और तीव्रता का अनुमान लगाती है, और जब जरूरत हो — तो उसे आधिकारिक रूप से नाम भी देती है।
13 देश मिलकर तैयार करते हैं नामों की सूची
इस प्रक्रिया में भारत अकेला नहीं है।
IMD के साथ कुल 13 देश जुड़े हुए हैं, जो मिलकर चक्रवातों के नाम सुझाते हैं।
इन देशों में शामिल हैं —
👉 भारत,
👉 बांग्लादेश,
👉 पाकिस्तान,
👉 श्रीलंका,
👉 मालदीव,
👉 म्यांमार,
👉 ओमान,
👉 ईरान,
👉 कतर,
👉 सऊदी अरब,
👉 संयुक्त अरब अमीरात,
👉 यमन और
👉 थाईलैंड।
ये सभी देश मिलकर एक साझा सूची (Shared List) बनाते हैं, जिसमें हर देश अपनी ओर से कुछ नाम प्रस्तावित करता है।
उदाहरण के तौर पर, हाल ही में सक्रिय हुआ तूफान “मोंथा” (Montha) का नाम थाईलैंड ने सुझाया था, जिसका अर्थ है “सुगंधित या सुंदर फूल”।
तूफान को नाम कब दिया जाता है?
अब सवाल उठता है — कब किसी तूफान को नाम दिया जाता है?
इसका जवाब भी दिलचस्प है।
जब किसी क्षेत्र में समुद्र की सतह पर लगातार 24 नॉट (लगभग 62 किलोमीटर प्रति घंटे) या उससे अधिक की रफ्तार से हवाएं चलने लगती हैं,
और मौसम वैज्ञानिक यह पुष्टि कर देते हैं कि यह प्रणाली एक चक्रवात का रूप ले चुकी है,
तब RSMC नई दिल्ली उसे आधिकारिक रूप से नाम देता है।
एक बार नाम तय हो जाने के बाद,
वह नाम सभी देशों में समान रूप से उपयोग किया जाता है, ताकि किसी प्रकार का भ्रम न हो।
इससे जानकारी साझा करना, चेतावनी जारी करना और लोगों को सतर्क करना बहुत आसान हो जाता है।
नामकरण के लिए तय किए गए नियम
IMD और सदस्य देशों ने नामकरण के लिए कुछ सख्त नियम भी बनाए हैं ताकि किसी को आपत्ति न हो और नाम सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य हो।
इन नियमों के अनुसार —
- नाम तटस्थ होना चाहिए – इसमें किसी भी तरह का राजनीतिक, धार्मिक या सांस्कृतिक पक्षपात नहीं होना चाहिए।
- किसी समुदाय, देश या संस्कृति का अपमान नहीं होना चाहिए।
- नाम सरल और उच्चारण में आसान होना चाहिए।
- नाम बहुत लंबा नहीं होना चाहिए – सामान्यतः 8 अक्षरों से अधिक नहीं।
- एक बार उपयोग हो चुका नाम दोबारा नहीं लिया जाता।
इसलिए यदि कोई चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी साबित होता है, तो उसका नाम स्थायी रूप से “रिटायर” (Retire) कर दिया जाता है, ताकि उस नाम को फिर कभी किसी तूफान के लिए न इस्तेमाल किया जाए।
नाम क्यों ज़रूरी है?
पहले चक्रवातों को केवल संख्याओं या तकनीकी कोड से पहचाना जाता था — जैसे “Cyclone 02A” या “B04”।
लेकिन यह आम लोगों के लिए न तो समझने में आसान था, न ही याद रखने में।
इसलिए तय किया गया कि हर तूफान को एक नाम दिया जाए —
ताकि चेतावनी देते समय उसे आसानी से पहचाना जा सके और लोग तुरंत सतर्क हो जाएं।
नाम सुनते ही लोग जान जाते हैं कि “खतरा पास है” और तैयारी करनी जरूरी है।
जैसे — “अम्फान आ रहा है” या “ताउते से सावधान रहिए” — ऐसी चेतावनियाँ लोगों के मन में तुरंत असर डालती हैं।
नाम में छिपी संवेदनशीलता और जागरूकता
दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर नाम किसी प्राकृतिक तत्व, फूल, पक्षी, जानवर या भावना से जुड़े होते हैं।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि नाम यादगार भी हो और किसी की भावनाओं को ठेस भी न पहुंचे।
उदाहरण के लिए —
“गुलाब” (पाकिस्तान द्वारा सुझाया गया),
“बिपरजॉय” (बांग्लादेश द्वारा),
और “मोंथा” (थाईलैंड द्वारा) — ये सभी नाम सुनने में सुंदर हैं, लेकिन जब ये किसी चक्रवात से जुड़े होते हैं,
तो उनके पीछे चेतावनी और तैयारी का संदेश छिपा होता है।