छठ घाटों पर खतरा! पहला कदम रखते ही डूबे पैर, कीचड़ और नुकीले पत्थरों से व्रतियों की मुश्किल बढ़ी

छठ घाटों की तैयारी पर सवाल: दीघा और पहलेजा घाट बने परेशानी का सबब, श्रद्धालु कर रहे हैं मुश्किलों का सामना

लोक आस्था का महापर्व छठ नजदीक है। पूरा बिहार उत्सव की भावना में डूबा है, लेकिन पटना के कई घाटों पर तैयारियों की सच्चाई प्रशासनिक दावों से बिल्कुल अलग दिख रही है। जहां एक ओर अधिकारी दावा कर रहे हैं कि घाटों पर सभी इंतजाम पूरे हो चुके हैं, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है।

सबसे बड़ा और प्रमुख दीघा घाट से लेकर उसके पास स्थित पहलेजा घाट तक, हर जगह श्रद्धालु परेशान हैं। पहलेजा घाट पर इस समय सबसे बड़ी समस्या कीचड़ और गहरे पानी की है। जहां अर्घ्यदान के लिए इंतजाम तो किए गए हैं, वहीं घाट पर पहुंचने वाले व्रती कीचड़ में फिसलते नजर आते हैं। प्रशासन ने बालू की बोरियां जरूर रखवाई हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। गुरुवार की दोपहर तक यहां की स्थिति ऐसी थी कि जैसे ही कोई व्रती पानी में पहला कदम रखता, वह अचानक दो फीट गहराई में चला जाता।

स्थानीय लोगों और नाविकों ने बताया कि यह परेशानी सिर्फ एक घाट की नहीं है। दीघा से लेकर कुर्जी और पहलेजा तक कई घाटों पर यही हाल है। बैरिकेडिंग जरूर कर दी गई है, लेकिन पानी के भीतर जमीन को समतल करने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। ऐसे में महिलाएं और बुजुर्ग श्रद्धालु के लिए यह खतरा बन सकता है। स्नान करने उतरे लोगों का कहना है कि बैरिकेडिंग देखकर उन्हें भरोसा होता है कि वहां तक पानी कम गहरा होगा, पर जैसे ही वे बढ़ते हैं, अचानक गहराई आ जाती है।

एक स्थानीय निवासी ने बताया कि घाटों पर सफाई और सुरक्षा के लिए कर्मी तैनात हैं, लेकिन सबसे अहम चीज — सुरक्षित और समतल रास्ता — अब तक अधूरा है। कीचड़ और फिसलन के कारण लोग बार-बार गिर रहे हैं। कुछ अधिकारी जो निरीक्षण करने पहुंचे थे, वे भी फिसलकर गिर गए।

वहीं गेट नंबर 93 की बात करें तो यहां मिट्टी डालने का काम अब जाकर शुरू हुआ है। सिर्फ दो दिन बचे हैं, ऐसे में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से पहले यहां तैयारियों को पूरा करना चुनौती से कम नहीं। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि काम अब शुरू हुआ है, जबकि इसे कम से कम एक सप्ताह पहले ही पूरा कर लेना चाहिए था।

गेट नंबर 92 की स्थिति तो और भी खराब है। यहां की सड़क अधूरी है, नुकीले पत्थर पूरे रास्ते पर बिखरे हैं। छठव्रतियों को नंगे पैर चलकर घाट तक जाना होता है, ऐसे में यह सड़क उनके लिए बड़ी मुश्किल बन सकती है। सड़क के बीच बनाए गए सपोर्ट पिलर ने रास्ते को दो हिस्सों में बांट दिया है, जिससे भीड़भाड़ में हादसे की आशंका बढ़ गई है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि गुरुवार को कुछ मजदूर यहां मिट्टी डालने आए थे, लेकिन इतनी बड़ी सड़क को समतल और आरसीसी ढालना एक या दो दिन में असंभव है। अब सवाल यह उठता है कि जब हर साल छठ महापर्व एक तय तिथि पर आता है, तो आखिर इतनी देरी क्यों होती है?

शहर के लोग कह रहे हैं कि अधिकारी केवल दिखावे के निरीक्षण कर रहे हैं। प्रमंडलीय आयुक्त, डीएम और नगर आयुक्त जब दौरे पर आते हैं तो उन्हें सिर्फ वही घाट दिखाए जाते हैं जो पहले से ठीक-ठाक हैं। जिन जगहों पर समस्या ज्यादा है, वहां उन्हें ले जाया ही नहीं जाता।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या प्रशासन अंतिम समय तक इंतजार करेगा, या श्रद्धालुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा? छठ व्रती हर साल अपनी श्रद्धा और आस्था के साथ गंगा घाटों की ओर आते हैं, लेकिन अगर घाट असमतल और कीचड़ भरे रहेंगे, तो यह श्रद्धा कहीं हादसे में न बदल जाए।

पटना के लोगों को अब बस यही उम्मीद है कि आने वाले एक-दो दिनों में प्रशासन कम से कम घाटों की सुरक्षा और सफाई पर पूरा ध्यान दे, ताकि लोक आस्था के इस महान पर्व पर कोई अप्रिय घटना न घटे और सभी श्रद्धालु शांति और भक्ति के साथ छठ मईया की आराधना कर सकें।

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