संघ के झांसे में नहीं आईं कमलताई गवई: संजय राउत का तंज – “उन्होंने चंद्रचूड़ की तरह व्यवहार नहीं किया”

संघ के झांसे में नहीं आईं कमलताई गवई: संजय राउत बोले – उन्होंने दिखाया असली आंबेडकरवादी साहस, देश को दिया बड़ा संदेश

आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के शताब्दी समारोह को लेकर एक बार फिर राजनीति गरमा गई है। इस बार चर्चा के केंद्र में हैं भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की मां कमलताई गवई। आरएसएस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित की गईं कमलताई गवई ने आखिरकार इस न्योते को अस्वीकार कर दिया। उनके इस फैसले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे गुट) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कमलताई गवई की जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि कमलताई ने दिखा दिया है कि सच्चे आंबेडकरवादी किसी भी तरह के झांसे या सत्ता की चमक-दमक में नहीं फंसते। राउत ने कहा,

“कमलताई गवई आंबेडकरवादी हैं और वह संघ के झांसे में नहीं आईं। इसके लिए मैं उन्हें और उनके पूरे परिवार को शुभकामनाएं देता हूं। उन्होंने पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की तरह व्यवहार नहीं किया।”

दरअसल, राउत ने यह टिप्पणी उस संदर्भ में की जब पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजा में शामिल हुए थे। उस समय भी राउत ने सवाल उठाया था कि क्या न्यायपालिका को इस तरह सत्ता के करीब दिखना चाहिए।

कमलताई गवई का साहसी फैसला

पांच अक्टूबर को नागपुर में होने वाले आरएसएस के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित की गईं कमलताई गवई ने बुधवार को एक खुला पत्र जारी करते हुए कहा कि वह कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगी।
अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि इस आमंत्रण के बाद जिस तरह से विवाद और आलोचनाएं शुरू हुईं, उससे उन्हें और उनके दिवंगत पति आर.एस. गवई (पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ आंबेडकरवादी नेता) की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।

कमलताई ने साफ कहा कि उन्होंने हमेशा बाबा साहेब आंबेडकर की विचारधारा को अपनाया है और उसी पर चल रही हैं।

“हमने अपना जीवन आंबेडकरवादी आंदोलन को समर्पित किया है। मेरे पति दादासाहेब गवई ने हमेशा समाज के वंचित वर्गों की आवाज उठाई। वे कई बार विपरीत विचारधाराओं वाले मंचों पर भी गए, लेकिन उन्होंने कभी हिंदुत्व या संघ की विचारधारा को स्वीकार नहीं किया।”

उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह आरएसएस के मंच पर जातीं, तो वहां भी आंबेडकरवादी विचार ही रखतीं।

“मैं वहां जाती तो डॉ. आंबेडकर के विचारों को सामने रखती, क्योंकि अलग विचारधाराओं वाले मंचों पर भी अपनी आवाज उठाना जरूरी होता है। लेकिन जब इस कार्यक्रम के कारण मेरे परिवार पर अनावश्यक आरोप लगाए जाने लगे, तब मैंने यह निर्णय लिया कि मुझे इस विवाद में शामिल नहीं होना चाहिए।”

राउत का आरएसएस पर हमला

संजय राउत ने इस पूरे मुद्दे पर आरएसएस पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि संघ खुद को ‘सांस्कृतिक संगठन’ कहता है, लेकिन आज वह पूरी तरह सत्ता से जुड़ा हुआ है।

“आज देश की ताकत आरएसएस के हाथों में है। प्रधानमंत्री से लेकर राज्यपालों तक की नियुक्तियां संघ के प्रभाव में होती हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब आरएसएस कहां था? स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान क्या है, आज तक किसी ने नहीं बताया।”

राउत ने आगे कहा कि संघ आज बाबा साहेब आंबेडकर और महात्मा गांधी जैसे महान नेताओं के नाम से खुद को जोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इन दोनों ने कभी संघ का साथ नहीं दिया।

“डॉ. आंबेडकर और महात्मा गांधी दोनों ही न्याय, समानता और बंधुत्व की बात करते थे। जबकि संघ का हिंदुत्व विचार हमेशा विभाजनकारी रहा है। ऐसे में कमलताई गवई का आरएसएस का निमंत्रण ठुकराना सिर्फ एक निजी निर्णय नहीं, बल्कि एक बड़ा वैचारिक संदेश है।”

आंबेडकरवादी समाज में खुशी

कमलताई गवई के इस फैसले को पूरे देश में आंबेडकरवादी समाज ने सराहा है। लोगों का कहना है कि उन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि सच्चा अनुयायी वही है जो सत्ता, पद और प्रभाव से ऊपर उठकर अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।

कमलताई का यह निर्णय केवल एक कार्यक्रम में न जाने का नहीं है — यह एक संदेश है कि विचारधारा बिकाऊ नहीं होती। उन्होंने दिखा दिया कि “संघ का मंच बड़ा हो सकता है, पर आंबेडकर का विचार उससे भी बड़ा है।”

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