“84 की उम्र में बुझी हंसी की वो लौ, नहीं रहे ‘अंग्रेजों के ज़माने के जेलर’ असरानी”

हंसी के बादशाह असरानी नहीं रहे, सिनेमा जगत में छा गया सन्नाटा”

हिंदी सिनेमा के सबसे प्यारे और बहुमुखी कलाकारों में से एक, श्री गोवर्धन असरानी का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने मुंबई में आज शाम लगभग 4 बजे अपनी अंतिम सांस ली। लंबे समय से बीमार चल रहे असरानी को सांस लेने में तकलीफ के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़ों में पानी भर गया था, जिससे स्थिति गंभीर हो गई थी। उनके निधन की पुष्टि उनके भतीजे अशोक असरानी और मैनेजर बाबूभाई थिबा ने की है।

असरानी का अंतिम संस्कार आज शाम सांताक्रूज़ श्मशान घाट पर किया गया, जहां परिवार और कुछ करीबी लोग ही मौजूद थे। परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार इस विदाई को बेहद निजी रखा। उनके पीछे उनकी पत्नी हैं, जो इस गहरे दुख में पूरी तरह टूट चुकी हैं।

असरानी ने अपने पांच दशक लंबे फिल्मी करियर में 350 से अधिक फिल्मों में काम किया। वे हिंदी सिनेमा के उन चुनिंदा कलाकारों में से एक थे जिन्होंने कॉमेडी, भावनात्मक और गंभीर किरदारों को समान सहजता से निभाया। दर्शकों के लिए असरानी सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि हंसी का पर्याय बन चुके थे।

उनका सफर 1960 के दशक में शुरू हुआ, लेकिन 1970 का दशक उनके करियर का स्वर्णिम काल रहा। इस दौर में उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं – मेरे अपने, कोशिश, बावर्ची, परिचय, अभिमान, चुपके-चुपके, छोटी सी बात, और रफू चक्कर जैसी फिल्मों में उनकी मौजूदगी ने हर दृश्य को जीवंत कर दिया।

लेकिन असरानी को असली पहचान मिली ‘शोले’ के जेलर वाले किरदार से। उनका डायलॉग — “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” — आज भी लोगों के चेहरों पर मुस्कान ले आता है। उनके चेहरे के एक्सप्रेशन, आवाज़ का उतार-चढ़ाव, और बेमिसाल कॉमिक टाइमिंग ने उन्हें उस दौर का सबसे प्रिय कॉमेडियन बना दिया।

असरानी सिर्फ कॉमेडियन नहीं थे, वे एक काबिल लेखक और निर्देशक भी थे। उन्होंने ‘चला मुरारी हीरो बनने’ फिल्म में लीड रोल निभाया, जिसका निर्देशन और लेखन भी उन्होंने खुद किया था। यह फिल्म उनके जीवन के संघर्ष और सपनों की झलक थी। इसके अलावा उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’ जैसी फिल्मों का भी निर्देशन किया। गुजराती सिनेमा में भी असरानी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और वहां भी अपनी प्रतिभा से सबका दिल जीता।

फिल्म इंडस्ट्री में असरानी को उनके सहकर्मी हमेशा एक खुशमिजाज, ईमानदार और अनुशासित कलाकार के रूप में याद करते हैं। वे सेट पर हमेशा समय पर पहुंचते, जूनियर्स को प्रोत्साहित करते और अपनी हंसी से माहौल हल्का बना देते थे। उनके साथ काम कर चुके कलाकारों का कहना है कि “असरानी जी के बिना किसी भी शूटिंग सेट की सुबह अधूरी लगती थी।”

आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तो पूरा बॉलीवुड शोक में डूबा है। सोशल मीडिया पर फैंस और सितारे उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। किसी ने लिखा – “आपने हमें हंसना सिखाया, आज आपकी याद में आंखें नम हैं।”

हिंदी सिनेमा की वह पीढ़ी जिसने असरानी को पर्दे पर देखा है, जानती है कि उन्होंने अपनी कॉमेडी से केवल हंसाया नहीं, बल्कि जीवन के तनावों के बीच मुस्कुराने की वजह दी। उनकी हर भूमिका में एक सादगी और एक सच्चाई झलकती थी, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।

असरानी भले ही आज इस दुनिया से चले गए हों, लेकिन उनके किरदार – शोले के जेलर, चुपके-चुपके के प्रोफेसर, और बावर्ची के मासूम रिश्तेदार – हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।
उनकी हंसी अब भी सिनेमाघरों की गूंज में, टीवी के दोहराए जाने वाले दृश्यों में, और फैंस की यादों में हमेशा मुस्कुराती रहेगी।

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