
122 साल बाद पितृपक्ष में चंद्र ग्रहण के बाद अब सूर्य ग्रहण – क्या बदलेगा हालात?
122 साल बाद एक बार फिर पितृपक्ष के दौरान ग्रहणों का अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। कुछ ही दिनों पहले 15 दिन पहले जब चंद्र ग्रहण लगा था, उसके बाद दुनिया भर में हलचल देखने को मिली। नेपाल में सत्ता संघर्ष हुआ, सरकार बदल गई। पेरिस और लंदन की सड़कों पर जनता ने बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन किए। चीन और थाईलैंड में बाढ़ और सैलाब ने तबाही मचाई, रूस में भूकंप आया। रूस-यूक्रेन युद्ध ने तो पोलैंड की सीमा तक दस्तक दे दी। इन घटनाओं को चंद्र ग्रहण के बाद हुई “अशांति” से जोड़कर देखा गया और लोगों के मन में सवाल उठने लगे – क्या अब सूर्य ग्रहण भी कुछ बड़ा संकट लेकर आने वाला है?
🌑 कब और कहां दिखेगा यह सूर्य ग्रहण?
यह सूर्य ग्रहण आंशिक (Partial Solar Eclipse) है। भारत में यह दिखाई नहीं देगा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और फिजी जैसे देशों में लोग इसे देख सकेंगे। भारतीय समयानुसार ग्रहण की शुरुआत रात 10:59 बजे होगी और यह अगले दिन तड़के 3:23 बजे समाप्त होगा।
🙏 धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यता
भारतीय परंपराओं में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना नहीं माना जाता, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है। कहा जाता है कि ग्रहण का असर सिर्फ उस जगह तक सीमित नहीं रहता जहाँ वह दिखाई देता है, बल्कि इसका प्रभाव हर जगह देखा जा सकता है।
ज्योतिषियों का मानना है कि यह सूर्य ग्रहण भारत के लिए भी असर डाल सकता है। विशेषकर राजनीति और मौसम से जुड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। पितृपक्ष में पड़ने वाला ग्रहण और भी संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यह पूर्वजों और आत्मिक ऊर्जा से जुड़ा समय होता है।
🔭 वैज्ञानिक नज़रिए से
वैज्ञानिक साफ कहते हैं कि ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है। इसका इंसानों, जानवरों या पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। यह सिर्फ सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति के कारण होने वाली खगोलीय घटना है।
ग्रहण को देखने और समझने से हमें अंतरिक्ष विज्ञान, ग्रहों की गति और ब्रह्मांड की संरचना के बारे में सीखने का मौका मिलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रहण से न तो कोई आपदा आती है और न ही यह मानव जीवन पर किसी तरह का सीधा असर डालता है।
❓ तो फिर क्यों जुड़ता है ग्रहण से विनाश का डर?
दरअसल, जब भी किसी बड़े ग्रहण के आसपास कोई प्राकृतिक आपदा, सत्ता परिवर्तन या बड़ा युद्ध होता है, तो लोग उसे ग्रहण से जोड़ने लगते हैं। लेकिन असल में ये घटनाएँ पहले से ही चल रही परिस्थितियों का नतीजा होती हैं।
नेपाल में सत्ता संघर्ष या रूस-यूक्रेन युद्ध पहले से ही लंबे समय से चल रहे थे। इसी तरह भूकंप और बाढ़ जैसी घटनाएँ प्रकृति का हिस्सा हैं। उनका ग्रहण से सीधा संबंध वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं है।
✅ ग्रहण के दौरान क्या करें और क्या न करें?
भारत में धार्मिक मान्यता है कि ग्रहण के समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए –
- ग्रहण काल में भोजन पकाना या खाना शुभ नहीं माना जाता।
- इस समय ध्यान, मंत्र जप और पूजा-पाठ करना श्रेष्ठ बताया गया है।
- गर्भवती महिलाओं को ग्रहण देखने से मना किया जाता है।
- ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान करना और घर की सफाई करने की परंपरा भी है।
हालांकि ये धार्मिक मान्यताएँ हैं और आस्था पर आधारित हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इनमें से किसी का भी स्वास्थ्य या जीवन पर प्रत्यक्ष असर नहीं पड़ता।
🌍 निष्कर्ष – डर नहीं, ज्ञान की ज़रूरत है
चंद्र ग्रहण के बाद दुनिया भर में जो घटनाएँ हुईं, उन्होंने निश्चित रूप से लोगों को डराया है। लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि ग्रहण से किसी प्रकार की सीधी तबाही नहीं आती।
यह सिर्फ एक प्राकृतिक घटना है, जिसे डर की नज़र से नहीं बल्कि ज्ञान और सीख की नज़र से देखना चाहिए।
इसलिए 122 साल बाद लगने वाला यह सूर्य ग्रहण अपने आप में ऐतिहासिक और दुर्लभ संयोग है। इसे डर का संकेत मानने के बजाय, इसे एक अद्भुत खगोलीय उत्सव की तरह देखना चाहिए।