सोनिया गांधी का बड़ा बयान: CJI गवई पर हमले की कड़ी निंदा, कहा– “लोकतंत्र पर वार अस्वीकार्य”

सोनिया गांधी बोलीं– “सीजेआई गवई पर हमला सिर्फ व्यक्ति पर नहीं, संविधान पर वार है”
विपक्ष के तमाम नेताओं ने जताई गहरी चिंता, कहा– नफरत और असहिष्णुता ने अब न्यायपालिका को भी निशाना बना लिया है

नई दिल्ली।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर सुप्रीम कोर्ट के अंदर सोमवार को हुए हमले के प्रयास ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना की न केवल कानूनी जगत में बल्कि राजनीतिक हलकों में भी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह हमला “केवल एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि भारत के संविधान पर हमला” है।

यह संविधान पर हमला है” – सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने अपने बयान में कहा,

“सर्वोच्च न्यायालय में भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश पर हुए इस हमले की निंदा करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं हैं। यह न केवल उन पर बल्कि हमारे संविधान पर भी हमला है। मुख्य न्यायाधीश गवई ने जिस शालीनता और संयम से इस घटना को संभाला, वह प्रशंसनीय है। लेकिन इस घटना ने पूरे देश को गहरी पीड़ा और आक्रोश से भर दिया है। अब समय है कि पूरा देश एकजुट होकर न्यायपालिका के सम्मान और संविधान की रक्षा के लिए खड़ा हो।”

उन्होंने आगे कहा कि यह घटना दर्शाती है कि देश में नफरत और असहिष्णुता किस कदर गहराई तक पहुँच चुकी है।

“जब न्याय के मंदिर में बैठे मुख्य न्यायाधीश पर कोई हमला करने की हिम्मत करता है, तो यह लोकतंत्र की जड़ों पर चोट है। ऐसी घटनाएं भारत की आत्मा को कमजोर करती हैं।”

खड़गे बोले – “यह शर्मनाक और घृणित कृत्य है”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा,

“सीजेआई गवई पर हमला न केवल न्यायपालिका की गरिमा पर आघात है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार है। यह शर्मनाक और घृणित कृत्य समाज में फैलती नफरत और कट्टरता की गहराई को दिखाता है। यह न्यायपालिका को डराने और अपमानित करने का प्रयास है। कांग्रेस पार्टी इस कृत्य की कड़ी निंदा करती है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।”

खड़गे ने आगे लिखा कि इस घटना से साफ है कि देश में नफरत का माहौल जानबूझकर फैलाया जा रहा है।

“जो लोग संविधान और न्याय के सिद्धांतों से असहमत हैं, वे हिंसा और अपमान का रास्ता अपना रहे हैं। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि भारत का न्याय तंत्र सदियों पुरानी लोकतांत्रिक परंपराओं पर टिका है, जिसे कोई कमजोर नहीं कर सकता।”

संघ परिवार की नफरत का प्रतिबिंब” – पिनाराई विजयन

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी इस घटना की तीखी निंदा की। उन्होंने कहा कि

“यह हमला संघ परिवार और दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा फैलाई जा रही नफरत का प्रतिबिंब है। इसे किसी व्यक्तिगत घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता। जब सांप्रदायिक कट्टरता देश के मुख्य न्यायाधीश तक को निशाना बनाने की हिम्मत करती है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि हमारी राजनीति कितनी जहरीली और विभाजनकारी होती जा रही है।”

विजयन ने कहा कि लोकतंत्र के लिए यह समय आत्ममंथन का है।

“अगर हम इस घटना को सामान्य मान लें, तो यह असहिष्णुता के बढ़ते माहौल की अनदेखी होगी। हमें संविधान और न्यायपालिका के प्रति सम्मान को पुनर्स्थापित करना होगा।”

शरद पवार बोले – “यह न्यायपालिका ही नहीं, राष्ट्र का अपमान है”

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार गुट) के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि यह हमला सिर्फ न्यायपालिका पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान के मूल्यों का गंभीर अपमान है।

“सुप्रीम कोर्ट हमारे न्याय और संविधान की सर्वोच्च संस्था है। वहां बैठे भारत के मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने का प्रयास हमारे लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। यह उन मूल्यों का अपमान है, जिन पर हमारा देश टिका है।”

क्या हुआ था सुप्रीम कोर्ट में

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील राकेश किशोर नामक व्यक्ति ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि, कोर्ट की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसे तुरंत रोक लिया और कोर्ट रूम से बाहर ले गए। बताया जा रहा है कि आरोपी वकील हाल ही में सीजेआई की भगवान विष्णु की मूर्ति से जुड़ी टिप्पणी से नाराज़ था। उसे ले जाते समय वह चिल्ला रहा था – “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे”।

देश में बढ़ती असहिष्णुता पर सवाल

यह घटना ऐसे समय में हुई है जब देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता, नफरत की राजनीति और असहिष्णुता पर लगातार बहस हो रही है। विपक्ष के नेताओं का कहना है कि यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश है।

सोनिया गांधी, खड़गे, पवार और विजयन जैसे नेताओं की एकजुट आवाज़ ने इस बात पर जोर दिया है कि न्यायपालिका की गरिमा और संविधान की रक्षा हर नागरिक का कर्तव्य है।

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