राजस्थान में 500 करोड़ की ठगी का खुलासा! बैंक कर्मचारियों ने रचा फ्रॉड का जाल

राजस्थान में 500 करोड़ की ठगी का खुलासा: बैंक कर्मचारियों ने बनाया फ्रॉड का जाल, सट्टेबाजों और साइबर ठगों को बेचे खाते

राजस्थान के अलवर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे बैंकिंग सिस्टम को हिला कर रख दिया है। यहां बैंक कर्मचारियों द्वारा की गई 500 करोड़ रुपये की साइबर ठगी का पर्दाफाश हुआ है। यह सिर्फ एक ठगी नहीं, बल्कि बैंकिंग की आड़ में चल रहा एक सुनियोजित आपराधिक नेटवर्क था, जिसमें बैंक के अंदर बैठे कर्मचारी ही ठगों के साथी बन गए थे।

म्यूल अकाउंट्स के जरिए ठगी का बड़ा खेल

अलवर पुलिस के मुताबिक, गिरफ्तार आरोपियों ने ‘म्यूल अकाउंट’ (Mule Accounts) के ज़रिए करोड़ों की ठगी को अंजाम दिया। ये लोग बैंक में फर्जी फर्मों और नामों से करंट/कॉर्पोरेट खाते खोलते थे और फिर इन खातों को ऊंचे कमीशन पर साइबर अपराधियों को बेच देते थे। बाद में इन्हीं खातों के जरिये सट्टेबाजी, ऑनलाइन गेमिंग, क्रिप्टो लेनदेन और फर्जी निवेश योजनाओं के नाम पर जनता से ठगी की रकम इधर-उधर की जाती थी।

पुलिस जांच में यह बात सामने आई है कि सिर्फ इन खातों के जरिए ही 500 करोड़ रुपये से अधिक की रकम का लेन-देन किया गया। इन खातों के खिलाफ अकेले एनसीआरपी (राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल) पर 4,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं।

पुलिस ने किया बड़ा खुलासा

अलवर के पुलिस अधीक्षक सुधीर चौधरी ने बताया कि अब तक इस मामले में 16 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें एक निजी बैंक के कई कर्मचारी भी शामिल हैं। इनमें गिरोह का मास्टरमाइंड वरुण पटवा (40), जो उदयपुर का रहने वाला है और वर्तमान में गुरुग्राम (हरियाणा) में रह रहा था, तथा सतीश कुमार जाट (35) निवासी हिसार (हरियाणा) प्रमुख रूप से शामिल हैं।

गिरफ्तार आरोपियों के पास से 26 एटीएम कार्ड, 33 मोबाइल फोन, 34 सिम कार्ड, 2.5 लाख रुपये नकद, कई चेकबुकपासबुक और दो कारें जब्त की गई हैं। इसके अलावा पुलिस ने करीब 10 बैंक खातों में लेन-देन पर रोक लगाई है, जिनमें लगभग 5 लाख रुपये मौजूद हैं।

ऐसे चलता था ‘फ्रॉड नेटवर्क’

पुलिस की जांच में सामने आया कि यह गिरोह बड़े ही संगठित तरीके से काम करता था।

  1. बैंक कर्मचारी ग्राहकों से संपर्क कर उन्हें कमीशन का लालच देते थे।
  2. इन ग्राहकों से फर्जी फर्मों या व्यापारिक नामों पर खाते खुलवाए जाते थे।
  3. फिर इन खातों की जानकारी और डेबिट कार्ड, पासबुक, चेकबुक आदि व्हाट्सएप या टेलीग्राम ग्रुप्स पर साइबर ठगों को बेच दिए जाते थे।
  4. ये साइबर ठग इन खातों का उपयोग ऑनलाइन ठगी, सट्टेबाजी, गेमिंग ऐप्स और क्रिप्टो करेंसी लेनदेन के लिए करते थे।
  5. ठगी के पैसों को कई खातों में घुमाया जाता था ताकि असली सोर्स तक पुलिस न पहुंच सके।

देशभर में फैला नेटवर्क

जांच अधिकारियों का कहना है कि यह नेटवर्क सिर्फ अलवर या राजस्थान तक सीमित नहीं था। इसकी जड़ें हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक फैली हुई हैं। देशभर में ठगों ने इन खातों का इस्तेमाल कर लाखों लोगों से पैसे ऐंठे। एनसीआरपी पोर्टल पर जिन शिकायतों का लिंक इन खातों से जुड़ा है, उनमें सट्टा, निवेश ठगी, कर्ज ऐप ठगी और क्रिप्टो स्कैम जैसे मामले शामिल हैं।

साइबर ठगी की सबसे बड़ी साजिश

पुलिस ने इस ठगी को राजस्थान में अब तक का सबसे बड़ा बैंकिंग फ्रॉड बताया है। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि अगर बैंक कर्मचारी ही अपराधियों से मिल जाएं, तो आम जनता का पैसा कितनी आसानी से लूटा जा सकता है। साइबर अपराधी अब सिर्फ हैकिंग या फर्जी लिंक से ही नहीं, बल्कि बैंकिंग सिस्टम के भीतर से भी लोगों को निशाना बना रहे हैं।

पुलिस की सख्त कार्रवाई

अलवर पुलिस ने बताया कि आगे इस पूरे नेटवर्क की गहराई से जांच की जा रही है। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि किन-किन बैंक शाखाओं में ऐसे फर्जी खाते खोले गए थे और इसमें शामिल अन्य कर्मचारी कौन हैं। पुलिस ने यह भी कहा कि आम जनता को अपने बैंक खातों की जानकारी किसी के साथ साझा नहीं करनी चाहिए, और अगर कोई व्यक्ति कमीशन पर खाता इस्तेमाल करने का ऑफर दे, तो तुरंत पुलिस या बैंक को सूचित करें।

क्या हैं म्यूल अकाउंट?

‘म्यूल अकाउंट’ ऐसे बैंक खाते होते हैं जो किसी तीसरे व्यक्ति को गैरकानूनी ट्रांजैक्शन के लिए दिए जाते हैं। आमतौर पर ठग इन खातों का उपयोग पैसे को “कानूनी” दिखाने के लिए करते हैं। ये खाते असली अपराधियों को छिपाने का काम करते हैं — यानी पैसा एक खाते से दूसरे खाते में ट्रांसफर होता रहता है और असली गुनहगार तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

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