पटना में बवाल: लालू-राबड़ी के घर घुसे सैकड़ों लोग, लगे नारे — “चोर विधायक नहीं चाहिए”, मचा हंगामा

बिहार चुनावी बवंडर : लालू-राबड़ी आवास पर प्रदर्शनकारियों का हंगामा, राजद नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती

बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनाव का ऐलान भले ही औपचारिक रूप से अभी न हुआ हो, लेकिन माहौल ऐसा है मानो चुनावी रणभूमि सज चुकी हो। इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शनिवार को पटना स्थित लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर अचानक बवाल मच गया।

मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र के सैकड़ों लोग अचानक लालू-राबड़ी के घर पहुँच गए। गुस्से से भरे इन प्रदर्शनकारियों ने आवास परिसर में घुसकर ज़बरदस्त नारेबाज़ी शुरू कर दी—
“चोर विधायक नहीं चाहिए… सतीश कुमार को हराना है!”

नारे गूंजे, माहौल गरमा गया और कुछ ही पलों में आवास के भीतर अफरा-तफरी का आलम हो गया।


विधायक के खिलाफ जनता का गुस्सा

प्रदर्शनकारियों का गुस्सा राजद के मौजूदा विधायक सतीश कुमार पर फूटा। उनका आरोप था कि विधायक ने पिछले कार्यकाल में क्षेत्र के विकास को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया। सड़क, बिजली, रोजगार जैसी बुनियादी ज़रूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

लोगों का कहना था कि विधायक ने जनता की समस्याओं को सुनना तो दूर, कभी उनके बीच आकर हालात का जायज़ा भी नहीं लिया। यही वजह है कि अब वे किसी भी हाल में उन्हें दोबारा टिकट नहीं मिलने देना चाहते।

गांव से आए एक बुजुर्ग प्रदर्शनकारी ने कहा—
“हमने वोट देकर विधायक बनाया था ताकि हमारा इलाका तरक्की करे, लेकिन पाँच साल में कुछ भी नहीं बदला। अब हमें ऐसे नेता नहीं चाहिए जो सिर्फ़ कुर्सी गर्म करें।”


लालू-राबड़ी के आवास पर अफरा-तफरी

जैसे ही बड़ी संख्या में लोग नारे लगाते हुए लालू-राबड़ी के आवास परिसर में दाख़िल हुए, सुरक्षा कर्मियों के हाथ-पाँव फूल गए। उन्हें बाहर निकालने की कोशिश हुई, लेकिन भीड़ का गुस्सा कुछ समय तक थमने का नाम नहीं ले रहा था।

नारेबाज़ी और विरोध प्रदर्शन से आवास परिसर में तनाव का माहौल बन गया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी खुद को इस अचानक हुए बवाल से अलग रखे रहे, लेकिन घटना ने साफ़ संकेत दिया कि पार्टी के भीतर टिकट बंटवारे को लेकर आंतरिक असंतोष कितना गहरा है।


चुनाव से पहले राजद की बढ़ी मुश्किलें

यह घटना राजद के लिए बेहद चिंता का सबब है। चुनाव सिर पर हैं और टिकट वितरण का मामला किसी भी पार्टी के लिए सबसे पेचीदा दौर होता है। मखदुमपुर से उठी यह बगावत अब पार्टी के भीतर अन्य जगहों पर भी लहर पैदा कर सकती है।

लोगों ने साफ़ कह दिया है कि यदि इस बार भी सतीश कुमार को टिकट दिया गया, तो वे इसका ज़ोरदार विरोध करेंगे और किसी भी हाल में चुनाव में समर्थन नहीं देंगे।
यानी जनता अब केवल नाराज़ नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने के मूड में है।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह विरोध सिर्फ़ एक विधानसभा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। यह मुद्दा धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन सकता है, क्योंकि जनता अब विकास और जवाबदेही चाहती है, सिर्फ़ जातीय समीकरण और पारंपरिक राजनीति नहीं।


बदलते राजनीतिक समीकरण

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों, गठबंधनों और करिश्माई नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। लेकिन इस बार जनता का गुस्सा और उनका बेबाक विरोध यह बता रहा है कि हालात बदल रहे हैं।

लोग नेताओं से सीधा सवाल पूछ रहे हैं—
“पाँच साल में किया क्या?”
“इलाके का विकास क्यों नहीं हुआ?”
“जनता की समस्या क्यों नहीं सुनी गई?”

ये सवाल सिर्फ़ एक विधायक से नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक वर्ग से जवाब माँग रहे हैं।

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