“ठंड की दस्तक के साथ बढ़ी दिल्ली की बेचैनी, प्रदूषण ने फिर तोड़ा रिकॉर्ड”

दिवाली से पहले दिल्ली की हवा में जहर घुलने लगा — राजधानी का AQI पहुंचा खतरे के निशान के करीब

दिवाली से पहले दिल्ली की हवा फिर से जहरीली होती जा रही है। हर साल की तरह इस बार भी अक्टूबर की शुरुआत में प्रदूषण ने दस्तक दे दी है। शनिवार को राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ‘खराब’ श्रेणी के करीब पहुंच गया। शाम 4 बजे तक औसत AQI 199 दर्ज किया गया, जो “मध्यम” श्रेणी के ऊपरी स्तर पर है। चांदनी चौक में तो हालात और भी भयावह हैं — यहां AQI 307 तक पहुंच गया, जो “बहुत खराब” श्रेणी में आता है। यह इस सीजन का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।

दिल्ली में आखिरी बार जून 2024 में हवा इतनी खराब हुई थी, जब मॉनसून की बारिश शुरू होने से ठीक पहले AQI 245 दर्ज हुआ था। अब मौसम में नमी घटने और धूल-धुएं की परतें जमने से हवा का मिजाज फिर से बिगड़ने लगा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की इकाई EARF (Early Warning System) ने चेतावनी दी है कि 14 अक्टूबर तक हवा की गुणवत्ता लगातार “खराब” श्रेणी में बनी रह सकती है।

GRAP फिलहाल लागू नहीं होगा

दिल्ली की हवा में गिरावट के बावजूद अभी ग्रैडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू नहीं किया गया है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने शनिवार को समीक्षा बैठक कर हालात पर चर्चा की। अधिकारियों ने बताया कि शनिवार को AQI अभी ‘खराब’ स्तर में पूरी तरह प्रवेश नहीं कर पाया था, इसलिए फिलहाल GRAP के किसी भी चरण को लागू नहीं किया गया। हालांकि आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर रविवार तक हालात बिगड़ते हैं, तो तुरंत कड़े कदम उठाए जाएंगे।

छह राज्यों में जली पराली, दिल्ली पर असर फिलहाल मामूली

इस बार पराली जलाने की शुरुआत भी हो चुकी है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, शनिवार को छह राज्यों से कुल 64 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें सबसे अधिक 42 मामले उत्तर प्रदेश में, 14 पंजाब में, 6 मध्य प्रदेश में और एक-एक घटना हरियाणा और राजस्थान में देखी गई।
हालांकि अच्छी खबर यह है कि अभी दिल्ली की हवा पर पराली का असर बहुत कम है। डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) के मुताबिक, शुक्रवार को दिल्ली के PM 2.5 में पराली का योगदान मात्र 0.34% था। यानी फिलहाल दिल्ली की हवा को बिगाड़ने वाले कारण स्थानीय हैं — जैसे वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन और कचरा जलाना।

दिल्ली की हवा खराब करने में सबसे बड़ा हाथ ट्रांसपोर्ट सेक्टर का

DSS की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को दिल्ली में कुल प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान 19.1% ट्रांसपोर्ट सेक्टर से आया। इसके बाद सोनीपत से 10.8%, झज्जर और दिल्ली के आवासीय इलाकों से 4.8% उत्सर्जन दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा साफ बताता है कि राजधानी की हवा में जहरीलापन सिर्फ पराली से नहीं, बल्कि शहर के भीतर से उठ रहे धुएं से भी है। बढ़ते वाहनों की संख्या और जाम में खड़े इंजनों से लगातार निकलने वाला धुआं दिल्ली के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है।

एक्सपर्ट्स की राय: अब सिर्फ इमरजेंसी नहीं, स्थायी समाधान चाहिए

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी का कहना है,

“हम फिर उसी प्रदूषण आपातकाल के मौसम में प्रवेश कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि सिर्फ अस्थायी कदमों से नहीं, बल्कि हर स्रोत से उत्सर्जन घटाने के लिए स्थायी नीति बनाई जाए। जब तक हम स्रोत-वार व्यवस्थित निवारक उपाय नहीं अपनाते, हवा साफ नहीं हो सकती।”

वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की वायु प्रयोगशाला के पूर्व प्रमुख दीपांकर साहा ने कहा,

“बारिश खत्म होते ही मौसम की स्थितियां बिगड़ने लगती हैं। अक्टूबर के मध्य से हवा भारी हो जाती है, जिससे धूल और धुआं जमीन के पास ही अटक जाता है। यही वजह है कि गंगा के मैदानी इलाकों में, खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर में, वायु गुणवत्ता ‘खराब’ से ‘बेहद खराब’ स्तर तक पहुंच जाती है।”

क्यों हर साल दोहराई जाती है वही कहानी?

दिल्ली में प्रदूषण पर हर साल बड़ी-बड़ी बैठकें होती हैं, योजनाएं बनती हैं, लेकिन असर बहुत कम दिखता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के सख्त नियम नहीं लागू होंगे, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार नहीं होगा और गाड़ियों की संख्या पर नियंत्रण नहीं किया जाएगा, तब तक हालात में सुधार मुश्किल है।

सर्दी के मौसम में हवा का रुख भी प्रदूषण को बढ़ा देता है। ठंडी और स्थिर हवाओं के कारण प्रदूषक कण वातावरण में फंस जाते हैं। ऐसे में थोड़ी सी पराली या वाहनों से निकलने वाला धुआं भी लंबे समय तक हवा में टिका रहता है।

अब क्या करना जरूरी है?

दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए यह समय सावधानी बरतने का है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सुबह-सुबह की सैर या खुले में व्यायाम फिलहाल टालें, क्योंकि हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM 2.5) फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। बच्चों और बुजुर्गों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

सरकार को भी चाहिए कि दिवाली से पहले ही “एंटी-डस्ट” ड्राइव, वाहन जांच, और कचरा जलाने पर सख्ती जैसे कदम तेज किए जाएं। तभी राजधानी को इस सर्दी में एक और “गैस चेंबर” बनने से बचाया जा सकता है।

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