
फेफड़ों के बिना भी ली जा सकती है सांस! वैज्ञानिकों ने खोजी इंसानी शरीर की नई “सांस लेने” की क्षमता
सोचिए, अगर किसी इंसान के फेफड़े काम करना बंद कर दें, तो क्या वह फिर भी सांस ले सकता है? यह सवाल सुनने में असंभव लगता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसी खोज की है जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। अब इंसान फेफड़ों के बजाय शरीर के एक और हिस्से से भी ऑक्सीजन ले सकता है — और यह हिस्सा है मलद्वार (Rectum)!
जी हां, इसे “एनल ब्रीदिंग” या “बट ब्रीदिंग” कहा जा रहा है। यह तकनीक अब तक सिर्फ कुछ खास जलीय जीवों में देखी गई थी, लेकिन अब मनुष्यों पर भी इसके सफल परीक्षण शुरू हो चुके हैं।
प्रकृति से प्रेरित खोज
इस अनोखी खोज का विचार प्रकृति से आया है। कुछ मछलियां, जैसे लोच (Loach), जब पानी में ऑक्सीजन की कमी महसूस करती हैं, तो वे अपने पाचन तंत्र के जरिए सांस लेती हैं। वे सतह पर आकर हवा निगलती हैं, जो उनके पाचन तंत्र से गुजरते हुए रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाती है। इसके अलावा कुछ कछुए, समुद्री खीरे (Sea Cucumbers) और ड्रैगनफ्लाई निंफ्स भी तब अपने शरीर के निचले हिस्से से ऑक्सीजन अवशोषित कर सकते हैं जब उनके फेफड़े पर्याप्त काम नहीं कर रहे होते।
इन्हीं जीवों से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने सोचा — “अगर ये जीव अपने मलद्वार के जरिए सांस ले सकते हैं, तो क्या इंसान भी ऐसा कर सकता है?” और यही सवाल बना इस खोज की शुरुआत का आधार।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को “एंट्रल वेंटिलेशन” (Enteral Ventilation) नाम दिया है। इस तकनीक में ऑक्सीजन से भरी हुई एक विशेष द्रव सामग्री को एनिमा (Enema) की तरह मलद्वार के रास्ते शरीर में डाला जाता है। यह द्रव आंतों की दीवारों से होकर रक्त में पहुंचता है, जिससे शरीर को ऑक्सीजन मिलती है — यानी फेफड़ों की जगह आंतें “सांस लेने” का काम करती हैं।
यह तरीका सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह गंभीर स्थिति में मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकता है — खासकर तब, जब वेंटिलेटर या ऑक्सीजन सिलेंडर भी पर्याप्त न हों।
मानवों पर हुआ सफल परीक्षण
शोधकर्ताओं ने सबसे पहले इस तकनीक को चूहों और सूअरों पर आजमाया। परिणाम इतने सकारात्मक रहे कि जापान में 27 स्वस्थ पुरुषों पर इसका परीक्षण किया गया।
इन प्रतिभागियों को परफ्लूरोडेकालिन (Perfluorodecalin) नामक एक द्रव को रेक्टम में डालने के लिए कहा गया। यह द्रव 60 मिनट तक रखा गया, और 20 लोगों ने इसे बिना किसी गंभीर परेशानी के सहन किया। कुछ को हल्की असहजता या पेट फूलने की शिकायत हुई, लेकिन कोई दुष्प्रभाव नहीं पाया गया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि यह द्रव अभी ऑक्सीजनयुक्त नहीं था, क्योंकि यह केवल सुरक्षा जांच के लिए किया गया था। अगला चरण होगा ऑक्सीजन से भरे द्रव का उपयोग करके यह जांचना कि यह वास्तव में रक्त में ऑक्सीजन स्तर को बढ़ा सकता है या नहीं।
भविष्य की मेडिकल क्रांति
इस खोज के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. ताकानोरी ताकेबे (Takanori Takebe) के अनुसार, “यह पहला मौका है जब मानव शरीर में इस तरह की प्रक्रिया सफलतापूर्वक की गई है। भविष्य में यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है जो गंभीर सांस की समस्या से जूझ रहे हैं।”
दरअसल, निमोनिया, फेफड़ों के संक्रमण, या गंभीर चोटों के मामलों में शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। कई बार वेंटिलेटर भी मदद नहीं कर पाता। ऐसे में अगर यह “एनल ब्रीदिंग” तकनीक सफल हो गई, तो यह जीवन बचाने का एक नया रास्ता खोल देगी।