आगरा हादसा: किसी ने रोटी कमाने के लिए घर छोड़ा, तो कोई बस दरवाज़े पर बैठा था — एक पल में सब ख़ामोश हो गए

आगरा का दर्दनाक हादसा: पांच परिवारों की उम्मीदें एक झटके में बिखर गईं, अब सिर्फ आंसू और अधूरी कहानियां बाकी हैं

आगरा के नगला बूढ़ी इलाके में हुई दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को मातम में डूबो दिया है। शुक्रवार रात तेज रफ्तार कार ने सड़क किनारे खड़े सात लोगों को रौंद दिया। इस हादसे में पांच लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दो की हालत गंभीर बनी हुई है। किसी ने अपने जवान बेटे को खो दिया, किसी का सुहाग उजड़ गया, तो किसी की गोद हमेशा के लिए सूनी हो गई। दर्द इतना गहरा है कि शब्द भी कम पड़ जाते हैं।

मृतकों में नगला बूढ़ी के बबली, कमल, कृष, बंटेश और आवास विकास कॉलोनी के भानु प्रताप शामिल हैं। जिन घरों में कल तक हंसी-खुशी का माहौल था, आज वहां सिर्फ सन्नाटा, रुदन और मातम पसरा हुआ है। हर आंख नम है, हर दिल में सवाल है—क्या इन मासूम चेहरों को न्याय मिल पाएगा?

बबली की कहानी: चार बच्चों की मां अब नहीं रही, किसके सहारे जिएगा परिवार?

बबली, जो दूसरों के घरों में काम कर अपने बच्चों का पेट पाल रही थीं, अब इस दुनिया में नहीं हैं। दस साल से मायके में रह रही बबली का जीवन संघर्ष से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हादसे के बाद उनके चार छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए हैं। बेटा गोलू इस हादसे में घायल है, और बाकी बच्चे मां को पुकारते रहते हैं।

परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। वे कहते हैं—“पुलिस ने बीमा से मुआवजा दिलाने का वादा किया था, लेकिन अब कह रही है कि कोर्ट के चक्कर लगाओ।” सवाल उठता है कि जब रोटी के लाले हों, तब ये परिवार कोर्ट-कचहरी के चक्कर कैसे लगाएगा? आखिर इन मासूम बच्चों का भविष्य किसके सहारे चलेगा?

कमल का नन्हा बेटा आज भी पापा-पापा पुकारता है

कमल के घर का हाल और भी दर्दनाक है। दो साल का बेटा बार-बार “पापा-पापा” कहकर सबको रुला देता है। उसकी बुआ ज्योति उसे संभाल रही हैं, लेकिन जब भी वह अपने पिता की तलाश में रोता है, पूरा घर सिसकियों में डूब जाता है। कमल की पत्नी की दो साल पहले ही मौत हो चुकी थी। अब यह मासूम बच्चा न मां के स्नेह से परिचित है, न पिता के प्यार से।

परिवार ने बताया कि काम से लौटने पर कमल हमेशा बेटे को गोद में उठा लेता था, उसे टॉफी और चॉकलेट दिलाकर लाता था। अब वही बेटा घर के कोने में बैठा हर दरवाजे पर नजर टिकाए पापा का इंतजार करता है — जो अब कभी नहीं लौटेंगे।

कृष की मौत ने तोड़ दी मां की उम्मीदें

कृष की मौत के बाद उनके परिवार की हालत शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। मां गीता के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। वो कहती हैं—“मेरे बुढ़ापे की लाठी टूट गई।” पुलिस ने भरोसा दिया था कि बीमा कंपनी से मुआवजा मिलेगा, मगर अब किसी को परवाह नहीं। दस्तावेज मांगे गए, फिर सब चुप हो गए। कोई अधिकारी अब परिवार की सुध लेने नहीं आया।

भानु प्रताप: बहन की शादी अब अधूरी कहानी बन गई

आवास विकास कॉलोनी के भानु प्रताप की मौत ने उनके परिवार की खुशियां छीन लीं। 22 नवंबर को उनकी बहन की शादी तय थी, लेकिन अब घर में मातम का माहौल है। बहन और पत्नी बेसुध पड़ी हैं। दो साल के बेटे को अब तक समझ नहीं है कि उसके सिर से पिता का साया उठ चुका है।

परिजनों का कहना है कि भानु ही घर के इकलौते कमाने वाले थे। अब न कोई मदद आई है, न कोई अधिकारी घर तक पहुंचा है। शादी के सपने टूट गए, उम्मीदें बिखर गईं।

पुलिस पर गुस्सा, प्रशासन पर सवाल

इलाके के लोगों का गुस्सा पुलिस प्रशासन पर फूटा है। लोगों का कहना है कि पहले तो पुलिस की लापरवाही से हादसा हुआ, फिर अधिकारियों ने झूठे बीमा के आश्वासन देकर जल्दी से अंतिम संस्कार करा दिया। अब न कोई सुनवाई है, न कोई मुआवजा। परिजन कहते हैं—“अगर पुलिस ने शुरू में कार्रवाई की होती, तो शायद आज हमारे अपने ज़िंदा होते।”

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